मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद नास्तिक व्यक्ति पर क्या शरीयत की जगह सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम सवाल पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। केरल की रहने वाली साफिया पीएम नाम की लड़की की ओर से दाखिल याचिका पर सोमवार (29 अप्रैल 2024) को अदालत ने सुनवाई की।

दरअसल, लड़की का कहना है कि शरीयत के प्रावधान के चलते उसके पिता चाह कर भी उसे अपनी 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते हैं। बाकी संपत्ति पर भविष्य में पिता के भाइयों के परिवार का कब्ज़ा हो जाने की आशंका है। अब इस मामले की सुनवाई जुलाई 2024 के दूसरे सप्ताह में होगी।

वकील ने बताया, अजीब स्थिति में है याचिकाकर्ता

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया है कि याचिका डालने वाली अजीब स्थिति में है। वह और उसके पिता नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के चलते उन पर शरीयत कानून लागू होता है। याचिकाकर्ता का भाई डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी के चलते असहाय है। वह उसकी देखभाल करती है। शरीयत कानून में बेटी को बेटे से आधी संपत्ति मिलती है। ऐसे में पिता बेटी को 1 तिहाई संपत्ति दे सकते हैं, बाकी 2 तिहाई उन्हें बेटे को देनी होगी। अगर भविष्य में भाई की मृत्यु हो जाएगी तो भाई के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का भी दावा बन जाएगा।

मुस्लिम होने से इनकार करने पर भी नहीं मिलेगी संपत्ति

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है। यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है। इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। वकील ने यह भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देते हैं कि वह मुस्लिम नहीं है, तब भी उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों का दावा बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि काफी अहम है मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल को अहम बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा कि वह उसकी सहायता के लिए किसी वकील को नियुक्त करें। दरअसल, शरीयत एक्ट की धारा 3 में प्रावधान है कि मुस्लिम व्यक्ति को यह घोषणा करता है कि वह शरीयत के मुताबिक उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा, लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसे 'भारतीय उत्तराधिकार कानून' का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में यह प्रावधान है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं हो सकता।

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